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“कश्मीर में आतंकवाद बना करियर: आर्टिकल 370 हटने के बाद 14 में से 12 युवक बने आतंकी, सैलरी और प्रमोशन जैसी सुविधाएं भी”

कश्मीर में आतंक की इंडस्ट्री: जब भर्ती, सैलरी और प्रमोशन बना आतंकवाद का हिस्सा

कश्मीर घाटी में आतंकवाद अब सिर्फ हिंसा नहीं, बल्कि एक संगठित इंडस्ट्री का रूप ले चुका है। यहां भर्ती, ट्रेनिंग, सैलरी और प्रमोशन जैसे कॉर्पोरेट टर्म्स आतंकियों के नेटवर्क का हिस्सा बन चुके हैं। एक पूर्व आतंकी के अनुसार, 2003 में वह केवल 14 साल की उम्र में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) गया था। वहां उसे 2-3 महीने की ट्रेनिंग दी गई और शुरुआती वेतन 1000-1500 रुपए था। समय के साथ उसकी सैलरी 20-22 हजार रुपए तक पहुंच गई।

इस आतंकी ने बताया कि PoK में 5-6 साल बिताने के बाद उसे पाकिस्तान की जमीनी सच्चाई का अहसास हुआ। महंगाई, बेरोजगारी और खराब हालात के चलते उसने आतंक का रास्ता छोड़कर सरेंडर कर दिया। 2012 में वह भारत लौटा और अब मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा है। उसका कहना है कि कश्मीर के युवा गुस्से, डर या लालच में आकर आतंकी बनते हैं।

हाल ही में पहलगाम में हुए हमले में 26 टूरिस्ट की हत्या के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने 14 लोकल आतंकियों की पहचान की, जिनमें से 12 ने 2019 में आर्टिकल 370 हटने के बाद आतंकी संगठन जॉइन किए। इन संगठनों में लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन शामिल हैं। आदिल रहमान, आसिफ शेख और जुबैर वानी जैसे युवा अब इन संगठनों में सीनियर पोजिशन पर हैं।

एक अन्य आतंकी फारुख अहमद टेडवा, जो PoK में बैठा है, आतंकियों को ट्रेनिंग देने, रूट मैप तैयार करने और स्थानीय मदद पहुंचाने में माहिर है। उसे कश्मीर की पहाड़ियों का गहरा ज्ञान है और वह ऐप्स के जरिए कश्मीर के नेटवर्क से जुड़ा रहता है।

आर्टिकल 370 हटने के बाद लश्कर की एक्टिविटी में गिरावट आई, लेकिन इसी दौरान एक नया संगठन TRF (The Resistance Front) सामने आया, जिसने लश्कर के एजेंडे को आगे बढ़ाया। TRF का नेतृत्व पहले अब्बास शेख करता था, जो 2021 में मारा गया। अब सज्जाद गुल, जो PoK में बैठा है, TRF को संभाल रहा है।

सज्जाद गुल जैसे आतंकी कम उम्र के युवाओं को हिट एंड रन रणनीति सिखाकर उन्हें भारत में आतंकी गतिविधियों के लिए तैयार करते हैं। इन गतिविधियों में गैर-कश्मीरियों की हत्या, सुरक्षाबलों पर हमला और हथियारों की तस्करी शामिल है।

इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि कश्मीर में आतंकवाद अब केवल हथियारों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह युवाओं को आर्थिक और मानसिक रूप से अपने जाल में फंसाने वाली एक इंडस्ट्री बन चुकी है। भारत को न सिर्फ हथियारों से, बल्कि इस ब्रेनवॉश इंडस्ट्री से भी लड़ना होगा।

निष्कर्ष-

हाल ही में हुए पहलगाम हमले ने एक बार फिर से जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह आतंकी हमला न केवल निर्दोष नागरिकों और सुरक्षाबलों की जान को खतरे में डालता है, बल्कि क्षेत्र में शांति और पर्यटन पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। सरकार को चाहिए कि वह इस घटना की उच्चस्तरीय जांच कर आतंकियों के नेटवर्क को जल्द से जल्द खत्म करे। पहलगाम जैसे शांतिपूर्ण पर्यटन स्थल को सुरक्षित बनाए रखना बेहद जरूरी है। राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए ऐसी घटनाओं पर सख्त कार्रवाई अत्यावश्यक है।

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