🌸 जन्माष्टमी और इसकी विशेषता
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल जन्माष्टमी 16 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी। पौराणिक मान्यता के अनुसार, रोहिणी नक्षत्र में, आधी रात को, माता देवकी के गर्भ से भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। इस दिन मंदिरों और घरों में मध्य रात्रि को कान्हा जी की पूजा की जाती है, झूले सजाए जाते हैं और उन्हें 56 भोग अर्पित किए जाते हैं।“डाइटिंग और एक्सरसाइज़ के बाद भी क्यों नहीं घटता वज़न? जानिए 8 चौंकाने वाले कारण”
🥒 खीरे का महत्व जन्माष्टमी में

जन्माष्टमी की पूजा में खीरे का विशेष स्थान है। कई जगह यह परंपरा है कि रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के समय खीरा काटा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खीरा माता यशोदा के गर्भाशय का प्रतीक माना जाता है।
🔍 खीरा काटने की परंपरा क्यों?
खीरे का डंठल गर्भनाल (Umbilical Cord) का प्रतीक है।
- जैसे बच्चे के जन्म के समय गर्भनाल को काटा जाता है,
- वैसे ही आधी रात को खीरे को काटकर भगवान कृष्ण के जन्म का प्रतीकात्मक रूप से उत्सव मनाया जाता है।
खीरे को बीच से काटकर, उसके बीज निकालना नाभि छेदन (नाल काटना) की रस्म का प्रतिनिधित्व करता है।“टैरिफ़ पर ट्रंप का बड़ा वार! भारत पर 50% टैक्स, जानिए पूरी कहानी और असर”
🕉️ पौराणिक मान्यता
मान्यता है कि खीरे के बिना जन्माष्टमी की पूजा अधूरी मानी जाती है। खीरे को पूजा में शामिल करना न केवल जन्म की रस्म का प्रतीक है, बल्कि यह पवित्रता और शुद्धता का भी संकेत देता है।
🌿 खीरे और संतान सुख का संबंध
- कहा जाता है कि जन्माष्टमी पर खीरा भगवान कृष्ण को अर्पित करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- गर्भवती महिलाओं के लिए खीरा शुभ माना जाता है।
- इसे प्रसाद रूप में ग्रहण करने से घर में सुख-शांति और संतान से जुड़ी बाधाएं दूर होती हैं।
📜 सांस्कृतिक और सामाजिक पहलू
खीरा काटने की यह परंपरा सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाती है कि परंपराएं केवल पूजा का हिस्सा नहीं, बल्कि हमारे इतिहास और संस्कृति से जुड़ी होती हैं।अब बोलकर होगी बस, ट्रेन और फ्लाइट की बुकिंग – MakeMyTrip का धमाकेदार GenAI टूल लॉन्च!
🕛 मध्य रात्रि की रस्म
- ठीक 12 बजे, भगवान कृष्ण के जन्म का समय होते ही भक्त शंख बजाते हैं, घंटियां बजाते हैं और खीरा काटकर पूजा संपन्न करते हैं।
- इस दौरान “नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की” जैसे भजन गाए जाते हैं।
- खीरे को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
🙏 खीरा और आध्यात्मिकता
खीरा काटना सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि यह जीवन की शुरुआत और नवीनता का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि भगवान कृष्ण का जन्म केवल एक धार्मिक घटना नहीं, बल्कि धर्म, प्रेम और न्याय के पुनर्स्थापन का संदेश भी है।
🌟 निष्कर्ष
जन्माष्टमी पर खीरा काटने की परंपरा पौराणिक मान्यताओं, सांस्कृतिक प्रतीकों और धार्मिक आस्था से जुड़ी हुई है। यह हमें हमारे इतिहास, परंपराओं और भगवान कृष्ण के जन्म के महत्व की याद दिलाती है। इस साल जब आप जन्माष्टमी मनाएं, तो खीरे की इस परंपरा को जरूर निभाएं और इसके पीछे का संदेश भी याद रखें।
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